प्रियवंद बनो
वीर देश क योग्य निवासी प्रियवंद बनो ,
हे ईश्वर की श्रेष्ट कृति प्रियवंद बनो |
काला-काला अन्त्य काग है किसके मन को भाता ?
काली पिक सा मृदुभाषी ही सबको सखा बनाता |
प्रथम सोचकर अंत बोलना म्रिदुवचन का सार,
मधुर वचन है नहीं स्वयंभू जो जन्मे अपने आप |
म्रिदुवचन रिपु मित्र बनाता,
कुत्रिम विष सोम बन जाता |
तारक तमसा के केश बने त्यों
ललित सुमन की महक बनो
घोर तिमिर में प्रभा बनो
वीर देश क योग्य निवासी प्रियवंद बनो |
प्रियवंद ही है शारदा की सची संतान
कतुभाशी ईर्ष्यालु और आत्मश्लाघी नहीं देश की मान
कटुवचन, मद, क्रोध के रोग को इस औषध से दूर करो
वीर देश के योग्य निवासी प्रियवंद बनो |
प्रियवंद होना ही है चतुर्वेद का सार
प्रेम ही ब्रहमांड का शाश्वत आधार
कोई शिक्षक नहीं पारंगत जब तक वह प्रियवंद न हो
हरे भरे उपवन में ज्यो एकमात्र भी पुष्प न हो
कटुवचन के तीर चलाकर न दूजे को घात करो
हे वीर देश क योग्य निवासी प्रियवंद बनो|